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धान की फसल को कम लागत और उच्च उत्पादन के लिए ये किस्में अपनाएं :धान की इन किस्मों की करें खेती कम लागात मैं होगी ज्यादा पैदावार :भारत में धान की खेती सबसे ज्यादा जिन राज्यों में की जाती है उनमें बिहार का नाम सबसे पहले आता है। बिहार में धान की फसल किसानों की आय का मुख्य जरिया है। यहां पटना, गया, नालंदा, चंपारन, भागलपुर, नवादा, औरंगाबाद और बेगूसराय आदि जिले धान की खेती के लिए जाने जाते हैं। मई से जून तक धान की रोपाई की जाती है। किसान अलग-अलग जिलों में अपनी पसंद से धान की किस्मों की बुआई करते आए हैं लेकिन बेगूसराय एक ऐसा जिला है जहां धान की फसल अन्य जिलों की तरह ज्यादा नहीं हो पा रही है। ऐसे में किसानों को उम्मीद से कम पैदावार मिलती है। यह खबर बिहार के बेगूसराय जिले के किसानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। कृषि विज्ञान केंद्र पूसा के वैज्ञानिकों ने धान की नई किस्मों की खोज की है। इनका नाम राजेंद्र विभूति और राजेंद्र श्वेता हैं। यहां ट्रैक्टरगुरू वेबसाइट पर इस आर्टिकल में आपको इन नयी किस्मों की खासियतों सहित धान की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कराइ जा रही है। कृपया इस पोस्ट को लास्ट तक जरूर पड़ें और लेटेस्ट जानकारी के लिए हमारे Whatsapp Group से जुड़ें।
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धान की फसल को कम लागत और उच्च उत्पादन के लिए ये किस्में अपनाएंकहां पर किस किस्म के धान की होती है फसल ?
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बिहार में पटना, गया, अथवा नालंदा, भागलपुर, चंपारन, नवादा एवं औरंगाबाद आदि जिलों में वहां की जलवायु अथवा जमीन की मिट्टी के अनुसार अलग-अलग किस्मों की खेती करते हैं जैसे चंपारन के पश्चिमी भाग में सबसे ज्यादा मिर्चा नामक धान की किस्म की खेती की जाती है। इसे अप्रैल 2023 में जीआई टैग भी मिल चुका है। वहीं पटना में मंसूरी धान की खेती की जाती है।
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धान की ये किस्म देंगी अधिक पैदावार
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कृषि विज्ञान केंद्र ने बेगूसराय के किसानों को धान की नवीन विकसित किस्मों की खेती करने की सलाह दी है। इनका कहना है कि बिहार के बेगूसराय में किसानों को राजेंद्र विभूति किस्म की खेती करनी चाहिए। इससे इन्हे प्रति हेक्टेयर करीब 4 क्विंटल अधिक पैदावार मिलेगी। कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जिले की मिट्टी का परीक्षण करने के बाद राजेंद्र विभूति और राजेंद्र श्वेता किस्मों का ट्रायल किया जो यहां की मिट्टी के अनुकूल हैं। इसके अलावा राजेंद्र श्वेता किस्म भी इस क्षेत्र में सफल रहेगी।
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क्या है इन नई किस्मों की विशेषताएं?
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कृषि विज्ञान केंद्र पूसा के अंतर्गत विकसित की गई धान की नई नई किस्म राजेंद्र विभूति एवं राजेंद्र श्वेता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनसे बहुत कम सिंचाई में भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। कम पानी के बावजूद भी यह नस्लें अधिक दिनों तक हरी-भरी रह सकती हैं। इसके अलावा ये कम बहुत समय में पककर तैयार हो जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है ये दोनों किस्में बेगूसराय जिले के लिए उपयुक्त हैं। जून में किसान इनकी नर्सरी तैयार कर सकते हैं। राजेंद्र विभूति ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा कारगर सिद्ध होगी।
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धान की फसल बुआई का सही समय
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धान की फसल की बुआई का सही टाइम मानसून आने से पहले होता है। इसकी बुआई मई एवं जून में की जाती है। इसके बाद मानसून आने के साथ ही इसकी रोपाई कर देनी चाहिए। इन दिनों धान की नर्सरी तैयारी की जा रही हैं।
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देसी तरीके से करें बीजोपचार
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किसानों को धान की खेती की बुआई करने से पहले बीज को बहुत अच्छी तरह से उपचारित कर लेना चाहिए। 1 हेक्टेयर में अगर धान की रोपाई करनी हो तो 10 लीटर पानी में करीब 1.5 kg नमक मिला लें। इसमें एक आलू अथबा एक अंडा डाले दें। यदि आलू तैरने लगे तो समझिए कि यह बहुत अच्छा घोल बन गया। इसमें बीज डाल दें। जो बीज पानी के ऊपर तैरने लगे तो वह हटाकर नीचे जमे बीज को अलग बर्तन में साफ कर लें।
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धान की रोपाई के टाइम रखें दूरी का ध्यान
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धान की खेती करने वाले किसानो को चाहिए कि वे जब नर्सरी में धान के पौधे तैयार होने के बाद खेत में इनकी रोपाई करें तो पौधों की दूरी का बेहद खास ध्यान रखें। एक जगह पर एक अथबा दो पौधों से अधिक नहीं रोपें। पौधों के मध्य उचित दूरी रखनी चाहिए।
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